…………………..अब अपने नन्हे क़दमों से……………….

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कविता: रणवीर कुमार सिंह

अब अपने नन्हे क़दमों से

मैं कुछ भी कर जाऊंगा

यह दुनियां नाप दिखाऊंगा

अब अपने नन्हे क़दमों से

मानव के पैर हैं होते दो

जैसे पंछी के पंख हों दो

पर मुझमे एक विहीनता थी

यह मात-पिता की चिंता थी

अब अपने नन्हे क़दमों से…

मन्दिर, गिरजा, मस्जिद भटके

निज गोद लिए अंकवार भर

एक दिन नव-पंथ-प्रकाश मिला

संजय आनंद भारत विकास मिला

अब अपने नन्हे क़दमों से…

अंधकार में हाथ मसाल लिए

कुछ मानव ह्रदय विशाल लिए

है मन्दिर एक मानवता का

करुणा, दान, प्राणवता का

अब अपने नन्हे क़दमों से…

नव पग-पंख प्रदान किये

सेवा, मैत्री, उपकार किये

जो कुछ बनकर आ पाऊंगा

मैं अपना फर्ज निभाऊंगा

अब अपने नन्हे क़दमों से…

जिउं जो अब नव जीवन मैं

तो सबका मनपसंद बनूँ

चाहे जितना स्वछन्द बनूँ

पर बुद्ध विवेकानंद बनूँ

अब अपने नन्हे क़दमों से…

अब अपने नन्हे क़दमों से

मैं कुछ भी कर जाऊंगा

यह दुनियां नाप दिखाऊंगा

अब अपने नन्हे क़दमों से

“केवल वही जीवित हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं”

– स्वामी विवेकानंद

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