अंगदान का बेमिसाल उदाहरण
18 वर्षीय नौजवान एवं माता-पिता के एकलौते पुत्र संजय आनंद का दिनांक 10 मई 1995 को अमेरिका में कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी | दुःख की असहनीय घड़ी में भी उनके माता-पिता ने साहसिक निर्णय लेकर उसके पार्थिव शरीर को अस्पताल में दान दे दिया | उस नौजवान के शरीर के विभिन्न अंगो से :-
- 200 रेंगते हुए बच्चो को अस्थि प्रत्यारोपण के द्वारा नवजीवन मिला |
- दो नेत्रहीन व्यक्तियो को दृष्टि मिली |
- 80 प्रतिशत जली हुई नौजवान लड़की को चर्म प्रत्यारोपण के द्वारा नया जीवन मिला |
- एक व्यक्ति को ह्रदय प्रत्यारोपण से पुनर्जीवन मिला |
18 वर्ष की उम्र में अकाल मृत्यु में जाते-जाते भी संजय ने सैकड़ो लोगो का भला कर दिया | इस घटना से प्रेरित होकर उनके माता-पिता ने संजय आनंद फाउंडेशन का निर्माण किया जो पीड़ित मानवता की सेवा के लिए विगत अनेक वर्षों से कार्यरत है तथा प्रभु की कृपा से हमारे साथ बिहार से विकलांगता को दूर करने में वे जी-जान से जुटे हैं |
This unmatched eternal tradition is timeless and infinite.
In order to strengthen this belief, we follow certain principles that define our approach to the work involved. Some of our principles are :
- We must be humble and mindful in our actions and words.
- We must treat beneficiaries of our work with respect.
- We demand that we all act ethically.
भारत विकास परिषद् ( दक्षिण बिहार ) के चंद वरिए सदस्यों ने चंद वर्षों पूर्व पीड़ित मानवता की सेवा हेतु बिहार में एक बहुउद्देशीय विकलांग सेवा केंद्र – सह – अस्पताल की परिकल्पना की थी | 17 दिसंबर 1999 को कंकड़बाग, पटना के एक छोटे से परिसर से विकलांगों की सेवा यात्रा का प्रारंभ कर पटना – गया राजकीय राजमार्ग पर 5600 वर्गफीट भूखंड पर 15000 वर्गफीट के तीन मंजिले भवन का निर्माण कर दिसंबर 2006 से विस्तृत सेवाएं नए परिसर में प्रारंभ की गयी |
शारीरिक विकलांगता की भयावह समस्या ने हमे बड़े स्तर पर कार्य करने को प्रेरित किया जिसकी परिणति हमारा यह अस्पताल है | हमारे इस केंद्र से राज्य भर से आगत निर्धनों को कैलिपर, कृत्रिम पैर, वैशाखी, ऑर्थो शूज, श्रवण यंत्र, तिपहिया साईकिल एवं पोलियोग्रस्त रोगियों की शल्य चिकित्सा निःशुल्क की जाती है |
हम सुदूर स्थलों पर शिविर आयोजित करते रहे हैं | इन कार्यों में समाज की अन्य समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग हमेशा मिलता रहा है | हमे गर्व है कि यह कार्य हम अपने सदस्यों, सहयोगियों, शुभचिन्तकों, दानवीर दाताओं एवं समाजसेवी संगठनों के उदार सहयोग एवं समर्थन से सम्पादित कर पाते हैं |
हमने संकल्प लिया है – “21 वीं सदी का बिहार, विकलांगता मुक्त बिहार” | यह संकल्प आप सभी के सदभाव और करुणामय सहयोग से संभव है | हम आहवान करते हैं कि – समाज में कार्यरत सभी समाजसेवी संगठन, कार्यकर्ता बंधू, दानशील समाजसेवी महानुभाव, बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान इस अभियान में संकल्पित होकर जुड़ें और विकलांग मुक्त बिहार के सपने को साकार करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें |